उत्तराखंड के चमोली जनपद के माना गांव के पास हुए हिमस्खलन में सेना और आईटीबीपी के जवान मजदूरों के लिए देवदूत साबित हुए, तो वहीं घुटनों तक ताजा बर्फ में मजदूरों को खोजनेर और स्ट्रेचर पर लेकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने में जवानों का साहस भी सराहनीय है। तीन से चार फीट तक की बर्फ में जवानों के पैर भी धंस रहे हैं और एक जिंदगी को सुरक्षित लाने की जद्दोजहद में जवान हांफ भी लेकिन इन जवानों का ही हौसला था कि 32 मजदूरों को सुरक्षित बचा लिया गया। इनमें से दस श्रमिकों का सैन्य अस्पताल में उपचार चल रहा है।
जहां हल्की सी बारिश होने और बर्फ पड़ने से लोग अपने घरों में कैद हो जा रहे हैं वहीं माणा गांव में एवलांच आने और मजदूरों के दबने की खबर सुनते ही जवानों ने उन्हें बचाने के लिए तत्परता से काम शुरू कर दिया। एवलांच की तेज आवाज सुन कर आईटीबीपी के जवानों ने शोर भी मचाया था लेकिन शायद मजदूरों तक आवाज नहीं पहुंच पायी और वे हिमस्खलन की चपेट में आ गये।
खराब मौसम जवानों के कदम नहीं डिगा पाया और भारी बर्फबारी के बीच कुछ मजदूरों को सुरक्षित रेस्क्यू करने में सफलता मिली। जिस जगह पर हिमस्खलन हुआ है वहां पर नेटवर्क भी नहीं है। एवलांच की सूचना मिलते ही सबसे पहले सेना और आईटीबीपी के जवान मौके पर पहुंचे और उन्होंने कुछ लोगों को बर्फ से बाहर निकाला। ये मजदूर कंटेनर के भीतर थे लेकिन हिमस्खलन के कारण कंटेनरों की हालत भी खराब हो गयी।
घटनास्थल से 30 किलोमीटर पहले तक बर्फ ही बर्फ नजर आ रही है। यहां पर तीन से चार फीट तक बर्फ जमी हुई है और ताजी बर्फ होने के कारण इस पर चलना भी बेहद मुश्किल हो रहा है। ऐसे में किसी व्यक्ति को कंधे पर लेकर आना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है लेकिन साहस और शौर्य की मिसाल सेना के जवान इस चुनौती से भी नहीं घबराये और देर शाम तक 32 मजदूरों का सुरक्षित रेस्क्यू किया।
बचाये गये श्रमिकों के लिए जवान देवदूत साबित हुए। मौसम खराब होने के कारण हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर पाए तो वहीं एंबुलेंस को पहुंचने में भी दिक्कत हुई। जिस कारण राहत एवं बचाव कार्य के लिए पूरा जिम्मा आईटीबीपी और सेना के जवानों पर आ गया।
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