देहरादून: विश्व रंगमंच दिवसपर कुलपति महोदय प्रो सुरेखा डंगवाल ने कहा कि रंगमंच व्यक्तित्व विकास की महत्वपूर्ण विधा है क्यो कि नाटक प्रस्तुति के दौरान व्यक्ति के शरीर मानसिक एवं बौद्धिक स्तर पर तारतम्यता की भागीदारी रहती है। जिससे एक विद्यार्थी के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास होता है ।
इस अवसर पर प्रो एच० सी० पुरोहित ने कहा कि जीवन एक रंगमंच है । हमें जीवन में नित रोज अलग अलग भूमिकाओं का मंचन करना होता है और रंगमंच उन्हीं भूमिकाओं से हमारे व्यक्तित्व को निखारता है।
रंगमंच विभाग के डां अजीत पंवार ने कहा कि विभाग लगातार विद्याथिर्यों की सृजन शक्ति विकसित करने की दृष्टी से कार्य कर रहा है।
इस अवसर पर विद्यार्थियों संगीत और नृत्य की विभिन्न प्रस्तुतियों दी और एक हास्य नाटक ” सय्यां भयै कोतवाल” का मंचन किया गया जिसका निर्देशन कैलाश कांडवाल ने किया। बसंत सबनीस द्वारा लिखित मराठी नाटक ‘माझी विच्छा पूरी का’ का हिंदी रूपांतरण है। इसका अनुवाद उषा बनर्जी ने किया है।
नाटक में भ्रष्टाचार कौर की पोल खोलते हुए दिखाया कि काबिल लोगों की बजाय सत्ता में भ्रष्ट लोग जो अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। नाटक की भूमिकाओं में हर्षित- हवलदार, मुस्कान-मैनावती, निखिलेश–सिपाही, रजत-कोतवाल, नितिन-राजा, गणेश–सख्या, विनीत- प्रधान, फरमान– संगीत, चेतना– वेशभूषा, अंजेश- मंच प्रबंधन कलाकारों ने मह्वपूर्ण भूमिकाऐं निभाई।
इस अवसर पर प्रो० हर्ष डोभाल, डां चेतना पोखरियाल, डां माला शिखा, डां राशि मिश्रा, डां विवेक बहुगुणा, डॉ राजेश भट्ट , डॉ नरेंद्र रावल, डॉ सोनू कौर, डॉ अदिति बिष्ट उपस्थित थे।
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